Monday 19 December 2011

सचिन तेन्दुलकर - "बस नाम ही काफी है...."

वैसे तो सचिन तेन्दुलकर एक खिलाड़ी के तौर पर अपने खेल से बरसों से विश्व के खेल प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। अपने इसी बेहतरीन खेल के कारण वे शुरुआती दौर से ही खेल प्रेमियों, विशेषतः क्रिकेट के चाहने वालों के दुलारे रहे हैं और उनके बीच चर्चा का विषय रहे हैं। एक पूरी पीढ़ी इस शख़्स से प्रेरित होकर ही क्रिकेट की ओर आकर्षित हुई है। अतः आज 'सचिन तेन्दुलकर' नाम ही ध्यानाकर्षण का माध्यम बन गया है।
इस माध्यम का लाभ आज अधिक से अधिक लोग उठाने का प्रयास कर रहे हैं। चाहे वह मीडिया हो या कोई खिलाङी या कोई आलोचक या कोई विश्लेषक। खासतौर पर मीडिया ने जिस तरह से सचिन के नाम को आत्मसात् कर लिया है, वह समझने की ज़रूरत है। भारतीय मीडिया के लिये सचिन तेन्दुलकर महज़ एक नाम न होकर एक मुख्य विषय बन गया है, जिस पर लगातार कई दिनों तक 'प्राइम टाइम' पर कार्यक्रम चलाया जा सकता है। फिर चाहे वह सचिन का बनाया गया कोई नया रिकॉर्ड हो या किसी पारी में शून्य पर आउट हो जाना या 100वें शतक का इन्तज़ार हो, हिन्दी-अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं का मीडिया उनकी चर्चाओं से अटा पड़ा रहता है। सचिन की महान उपलब्धियों और उतनी ही बड़ी चर्चाओं का नतीजा है कि भारत सरकार को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' की पात्रता में परिवर्तन करना पड़ा, जिससे कि अब यह खिलाड़ियों को भी मिल सकता है।
बहरहाल, मुख्य मुद्दे पर लौटते हुए सचिन की बात करते हैं। दरअसल, मीडिया में सचिन के नाम पर होने वाली चर्चा का लाभ कई ऐसे लोग उठाने का प्रयास करते हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना होता है। चाहे वो सचिन के बारे में कोई विवादास्पद टिप्पणी हो या कोई अनूठी बात। वास्तव में ऐसे ही कुछ बयान बीते कुछ दिनों में सुनने को मिले, जिनसे टिप्पणीकार को बेहद चर्चा मिली। इन सबमें सबसे पहला नाम है, पाकिस्तान के विवादास्पद पूर्व तेज़ गेंदबाज़ शोएब अख़्तर का। शोएब की सचिन से प्रतिद्वन्दिता जगजाहिर है। इन जनाब ने हाल ही में अपनी आत्मकथा "कंट्रोवर्शली योर्स" जारी की। इस पुस्तक में एक जगह इन्होनें दावा किया कि सचिन हमेशा से इनकी तेज़ गेंदों से डरते रहे हैं। इनके इस दावे पर समस्त मीडिया में हो-हल्ला मचा और लम्बे समय से चर्चा में पाने में असफल रहे शोएब बहुत ही सफलतापूर्वक चर्चा का केन्द्र बन गये।
इन्हीं के एक अन्य पूर्व साथी हैं पूर्व कप्तान शाहिद अफ़्रीदी। इन्होनें न केवल शोएब की बात का समर्थन किया बल्कि ये दावा भी किया कि सचिन तो फ़िरकी गेंदबाज़ सईद अजमल से भी डरते थे और 2011 विश्व कप के सेमीफ़ाइनल मैच में सईद अजमल के सामने सचिन के पैर भी काँप रहे थे। क्रिकेट के जानकारों के लिए भले ही ये सब हास्यास्पद हो, परन्तु इससे अफ़्रीदी को ज़रूर चर्चा मिली। साथ ही उनका तथाकथित 'सन्यास' या कहें वनवास समाप्त हुआ, क्योंकि उपहार स्वरूप पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने उन्हें पुनः राष्ट्रीय टीम के लिये चयनित किया।
ये तो महज़ एक ही उदाहरण है। ऐसे कई अन्य उदाहरण हमें आए-दिन देख़ने को मिल जाते हैं, जो सचिन की शख़्सियत का इस्तेमाल करके अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। इन सबसे उन लोगों को ले ही पल-दो-पल की चर्चा मिले या न मिले, परन्तु इससे 'सचिन तेन्दुलकर' की शोहरत पर ज़रा भी नकारात्मक असर नहीं पड़ता और शायद भविष्य में भी नहीं पड़ेगा, क्योंकि सच हम भी जानते हैं और "वो" भी...........।।

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