इस वर्ष के प्रारंभिक महीनों में देश में ही दो ऐसे वाकये हुए, जिनकी देश को लम्बे समय से दरकार थी. सबसे खास बात यह कि ये दोनों ही घटनाएँ एक ही महीने के शुरुआती पखवाड़े में हुई. शायद आप सब भी समझ ही गए होंगे कि मैं किस सन्दर्भ में बात कर रहा हूँ? ये घटनाएँ हैं भारत का क्रिकेट विश्व कप जीतना और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक अदद आन्दोलन का आग़ाज़......
पहले बात विश्व कप की करते हैं. इस वर्ष भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश में संयुक्त रूप से आयोजित दसवें क्रिकेट विश्व कप में शुरू से ही भारत को सबसे प्रबल दावेदारों में से माना जा रहा था. भारतीय टीम ने अपने बेहतरीन खेल से इस बात को साबित भी कर दिया और अपनी ही मेज़बानी में ये ख़िताब जीतने वाला पहला देश बना. इस दौरान भारतीय टीम ने पहले तो क्वार्टर फ़ाइनल में चार बार की विजेता और ख़िताब की मज़बूत दावेदार ऑस्ट्रेलिया को हराकर बाहर का रस्स्ता दिखाया और २००३ के विश्व कप फ़ाइनल में मिली हार का हिसाब बराबर किया. इसके बाद टीम ने चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विश्व कप में अपने अजेय रिकॉर्ड को बरक़रार रखते हुए सेमीफाइनल में बुरी शिकस्त दी. वैसे तो देश वासियों और संभवतः भारतीय टीम के लिए ये भी किसी विश्व कप विजय से कम नहीं था. फिर भी अभी विश्व कप जीतना बाकी था, जो उन्होंने २ अप्रैल को मुंबई में श्रीलंका को हराकर कर दिखाया. २८ वर्षों बाद मिली इस ख़ुशी को देश भर में भरपूर जश्न के साथ मनाया गया. एक रूप में देखा जाये तो यह इस वर्ष की सबसे खुशनुमा खबर है.....
इसी महीने ( अप्रैल ) दूसरी सबसे महत्वपूर्ण और संभवतः वर्ष की सबसे प्रभावकारी घटना थी, भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सशक्त 'जन लोकपाल' की मांग को लेकर अन्ना हज़ारे द्वारा चलाया गया आन्दोलन. बीते दो साल के भीतर भ्रष्टाचार की बढती हुई खबरों के कारण जो असंतोष आम जन में बढ़ रहा था, उसको राह दिखाने का काम अन्ना हज़ारे ने अपने अनशन के ज़रिये किया. देश की पीड़ित जनता को एकजुट करने वाले इस आन्दोलन ने न केवल सरकार पर दबाव बनाया, बल्कि यह भी दर्शाया कि संघर्ष की क्षमता देशवासियों के अन्दर है, बस जरूरत है तो नेतृत्व की, जो अन्ना हज़ारे के रूप में मिला. ५ अप्रैल को राष्ट्रीय राजधानी स्थित जंतर-मंतर से शुरू हुआ अनशन (आन्दोलन) ९ अप्रैल तक चला. इस दौरान ही जितना समर्थन आन्दोलन को मिला उसने भविष्य में होने वाले आंदोलनों की भूमिका तैयार की. आन्दोलनों का दौर आगे भी चलता रहा और जून माह में बाबा रामदेव के असफल और फिर अगस्त में दोबारा अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में हुए सफल आन्दोलन ने इस देश के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया. परिणामस्वरूप सरकार को ६ दशकों से अटके लोकपाल मुद्दे को गंभीरता से विचार करना पड़ा और वर्षांत में शीतकालीन सत्र में लोकसभा में बिल पारित करा ही दिया. यद्यपि कल राज्यसभा में राजनीतिक इच्छा-शक्ति के अभाव में एक बार फिर बिल टल गया.....
उपरोक्त दोनों ही घटनाओं से जुड़े प्रमुख पक्षों के लिए हालाँकि साल की समाप्ति बेहद निराशाजनक रही. एक ओर भारतीय टीम अभी कल ही ऑस्ट्रेलिया से उसकी ही धरती पर पहले टेस्ट मैच में हार गयी. ये बात सब जानते हैं कि हमारी टीम विदेशी धरती पर अक्सर असहज ही रहती है. इसका उदाहरण हम इस साल पहले भी देख चुके हैं, जब इंग्लैंड में हमारी टीम की भद पिटी थी. तो इस तरह से भारतीय टीम के लिए साल का अंत बेहद निराशाजनक रहा. इसी तरह साल भर अपने अनशन और आन्दोलनों से देश को जगाने और राजनीतिक हलकों में खलबली मचने वाले अन्ना हज़ारे और उनके सहयोगियों के लिए भी वर्ष का अंत बहुत उत्साहजनक नहीं रहा. पहले तो सरकार ने टीम अन्ना के द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को लोकसभा में दरकिनार कर दिया. इसके बाद तीसरी बार अनशन पर बैठे अन्ना हज़ारे को उनके स्वास्थ्य ने ही इजाज़त नहीं दी और उन्हें दूसरे ही दिन स्वयं अनशन समाप्त करना पड़ा. हालाँकि कथित रूप से पहले जैसा जनसमर्थन न मिलने के कारण उनका अनशन असफल हो गया. फिर उन्हें १ जनवरी से शुरू हो रही जेल भरो मुहिम को भी रद्द करना पड़ा. इस तरह वर्ष का अंत भ्रष्टाचार रोधी अभियान के लिए भी फलदायक नहीं रहा.
तो क्या ये माना जाना चाहिए कि जो उम्मीदें इस वर्ष कि शुरुआत में भारतीय क्रिकेट टीम से और टीम अन्ना से बंधी थीं वो महज़ हवा के झोंके के समान थी?
अगर मैं इसको दूसरे नज़रिए से देखता हूँ तो लगता है कि ये कोई निराशाजनक अंत नहीं है, बल्कि निराशाओं का अंत है. अगर अभी तक हम वर्ल्ड कप नहीं जीत पाने को लेकर निराश थे तो इस साल उसका भी अंत हो गया. उसके बाद इंग्लैंड में हमे भले करारी हार का सामना करना पड़ा हो और विदेशी धरती पर हमारी लगातार नाकामी कि निराशा ऑस्ट्रेलिया से मिली हार के बाद और बढ़ गयी हो, लेकिन ये भी तो संभव है कि ये शायद हमारे लिए निराश होने का आखिरी क्षण था. शायद अब सारी निराशाओं का अंत हो जाये! अब आने वाले साल में हम न केवल अपनी धरती बल्कि विदेशी धरती पर जीत के झंडे बुलंद करें...... हम दोबारा से विश्व की नंबर १ टीम बन जाएँ. क्रिकेट तो महज़ मैंने उदाहरण स्वरुप लिखा है. ये बात हर खेल के लिए है. इस नए वर्ष में लन्दन में ओलिम्पिक खेलों का भी आयोजन होना है, जहाँ अभी तक हमे ज़्यादातर मौकों पर निराश होना पड़ा है. तो यही उम्मीद है कि अब यहाँ भी निराशा के बादल छंटेंगे और देश को खेल जगत में नयी खुशियाँ मिलेंगी.
यही बात भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के सन्दर्भ में भी लागू होती है. भले ही लोकपाल बिल एक बार फिर से अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त कर गया हो, और अन्ना का आंदोलन भी अप्रत्याशित रूप से असफल हो गया हो, जैसा कि सरकार और कई 'अन्ना आलोचकों' द्वारा प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन हमें इसे लेकर हतोत्साहित नहीं होना चाहिए. यहाँ पर मैं केवल अन्ना आन्दोलन की ही विशेष रूप से बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि भ्रष्टाचार विरोधी पूरी मुहिम की बात कर रहा हूँ, चाहे वह किसी भी रूप में किसी भी कोने में चल रही हो. हमें यह मानकर चलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में जो भी समस्या आ रही थी उनका अंत इस वर्ष के अंत के ही साथ हो चुका है. और अब इस नए साल में न केवल एक सशक्त एवं प्रभावकारी लोकपाल कानून आयेगा बल्कि भ्रष्टाचार के मामलों में कम से कम प्रारंभिक सफलता मिलेगी और यह पूरा आन्दोलन सफल होगा. साथ ही जिस तरह की ऊर्जा देशवासियों ने खासकर युवा वर्ग ने इस आन्दोलन में दिखाई है, वैसी ही ऊर्जा राष्ट्र के विकास और हित से जुड़े अन्य छोटे बड़े मुद्दों पर भी दिखायेंगे. लेकिन इसे केवल आन्दोलन तक ही सीमित नहीं रखना बल्कि इसको कार्यान्वित करने भी यही ऊर्जा बरक़रार रखनी होगी.
इन मुद्दों को इस नज़रिए से देखने का मेरा एकमात्र उद्देश्य सकारात्मकता का संचार करना है. मैं इस बात से भली-भांति परिचित हूँ कि ये सब बातें बोलने और व्यावहारिक रूप से लागू होने में बहुत फर्क है, लेकिन ये फर्क केवल सकारात्मक सोच और दिशा के ही ज़रिये मिट सकता है. हम करने को बहुत कुछ कर सकते हैं, बस हमारा नजरिया उस कार्य को करने के प्रति सही होना चाहिए और उस कार्य को पूरी इच्छा शक्ति से करना चाहिए. अतः ज़रूरत है कि हम आगामी वर्ष में अपनी सोच को और अपने कार्य को सकारात्मक दृष्टि से करें. फिर हमे जल्द ही ऑस्ट्रेलिया में जीतती हुई भारतीय टीम तो दिखेगी ही साथ ही ओलिम्पिक में भी हम अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे. रही भ्रष्टाचार की बात, तो जिस गति से यह फैला है, दूर होने में कम से कम उसकी आधी गति से ही सही, परंतु दूर ज़रूर हो जायेगा.........आमीन!
उपरोक्त दोनों ही घटनाओं से जुड़े प्रमुख पक्षों के लिए हालाँकि साल की समाप्ति बेहद निराशाजनक रही. एक ओर भारतीय टीम अभी कल ही ऑस्ट्रेलिया से उसकी ही धरती पर पहले टेस्ट मैच में हार गयी. ये बात सब जानते हैं कि हमारी टीम विदेशी धरती पर अक्सर असहज ही रहती है. इसका उदाहरण हम इस साल पहले भी देख चुके हैं, जब इंग्लैंड में हमारी टीम की भद पिटी थी. तो इस तरह से भारतीय टीम के लिए साल का अंत बेहद निराशाजनक रहा. इसी तरह साल भर अपने अनशन और आन्दोलनों से देश को जगाने और राजनीतिक हलकों में खलबली मचने वाले अन्ना हज़ारे और उनके सहयोगियों के लिए भी वर्ष का अंत बहुत उत्साहजनक नहीं रहा. पहले तो सरकार ने टीम अन्ना के द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को लोकसभा में दरकिनार कर दिया. इसके बाद तीसरी बार अनशन पर बैठे अन्ना हज़ारे को उनके स्वास्थ्य ने ही इजाज़त नहीं दी और उन्हें दूसरे ही दिन स्वयं अनशन समाप्त करना पड़ा. हालाँकि कथित रूप से पहले जैसा जनसमर्थन न मिलने के कारण उनका अनशन असफल हो गया. फिर उन्हें १ जनवरी से शुरू हो रही जेल भरो मुहिम को भी रद्द करना पड़ा. इस तरह वर्ष का अंत भ्रष्टाचार रोधी अभियान के लिए भी फलदायक नहीं रहा.
तो क्या ये माना जाना चाहिए कि जो उम्मीदें इस वर्ष कि शुरुआत में भारतीय क्रिकेट टीम से और टीम अन्ना से बंधी थीं वो महज़ हवा के झोंके के समान थी?
अगर मैं इसको दूसरे नज़रिए से देखता हूँ तो लगता है कि ये कोई निराशाजनक अंत नहीं है, बल्कि निराशाओं का अंत है. अगर अभी तक हम वर्ल्ड कप नहीं जीत पाने को लेकर निराश थे तो इस साल उसका भी अंत हो गया. उसके बाद इंग्लैंड में हमे भले करारी हार का सामना करना पड़ा हो और विदेशी धरती पर हमारी लगातार नाकामी कि निराशा ऑस्ट्रेलिया से मिली हार के बाद और बढ़ गयी हो, लेकिन ये भी तो संभव है कि ये शायद हमारे लिए निराश होने का आखिरी क्षण था. शायद अब सारी निराशाओं का अंत हो जाये! अब आने वाले साल में हम न केवल अपनी धरती बल्कि विदेशी धरती पर जीत के झंडे बुलंद करें...... हम दोबारा से विश्व की नंबर १ टीम बन जाएँ. क्रिकेट तो महज़ मैंने उदाहरण स्वरुप लिखा है. ये बात हर खेल के लिए है. इस नए वर्ष में लन्दन में ओलिम्पिक खेलों का भी आयोजन होना है, जहाँ अभी तक हमे ज़्यादातर मौकों पर निराश होना पड़ा है. तो यही उम्मीद है कि अब यहाँ भी निराशा के बादल छंटेंगे और देश को खेल जगत में नयी खुशियाँ मिलेंगी.
यही बात भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के सन्दर्भ में भी लागू होती है. भले ही लोकपाल बिल एक बार फिर से अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त कर गया हो, और अन्ना का आंदोलन भी अप्रत्याशित रूप से असफल हो गया हो, जैसा कि सरकार और कई 'अन्ना आलोचकों' द्वारा प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन हमें इसे लेकर हतोत्साहित नहीं होना चाहिए. यहाँ पर मैं केवल अन्ना आन्दोलन की ही विशेष रूप से बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि भ्रष्टाचार विरोधी पूरी मुहिम की बात कर रहा हूँ, चाहे वह किसी भी रूप में किसी भी कोने में चल रही हो. हमें यह मानकर चलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में जो भी समस्या आ रही थी उनका अंत इस वर्ष के अंत के ही साथ हो चुका है. और अब इस नए साल में न केवल एक सशक्त एवं प्रभावकारी लोकपाल कानून आयेगा बल्कि भ्रष्टाचार के मामलों में कम से कम प्रारंभिक सफलता मिलेगी और यह पूरा आन्दोलन सफल होगा. साथ ही जिस तरह की ऊर्जा देशवासियों ने खासकर युवा वर्ग ने इस आन्दोलन में दिखाई है, वैसी ही ऊर्जा राष्ट्र के विकास और हित से जुड़े अन्य छोटे बड़े मुद्दों पर भी दिखायेंगे. लेकिन इसे केवल आन्दोलन तक ही सीमित नहीं रखना बल्कि इसको कार्यान्वित करने भी यही ऊर्जा बरक़रार रखनी होगी.
इन मुद्दों को इस नज़रिए से देखने का मेरा एकमात्र उद्देश्य सकारात्मकता का संचार करना है. मैं इस बात से भली-भांति परिचित हूँ कि ये सब बातें बोलने और व्यावहारिक रूप से लागू होने में बहुत फर्क है, लेकिन ये फर्क केवल सकारात्मक सोच और दिशा के ही ज़रिये मिट सकता है. हम करने को बहुत कुछ कर सकते हैं, बस हमारा नजरिया उस कार्य को करने के प्रति सही होना चाहिए और उस कार्य को पूरी इच्छा शक्ति से करना चाहिए. अतः ज़रूरत है कि हम आगामी वर्ष में अपनी सोच को और अपने कार्य को सकारात्मक दृष्टि से करें. फिर हमे जल्द ही ऑस्ट्रेलिया में जीतती हुई भारतीय टीम तो दिखेगी ही साथ ही ओलिम्पिक में भी हम अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे. रही भ्रष्टाचार की बात, तो जिस गति से यह फैला है, दूर होने में कम से कम उसकी आधी गति से ही सही, परंतु दूर ज़रूर हो जायेगा.........आमीन!